गुरुवार, मई 06, 2010

सुनहरा शहर - जैसलमेर

सुनहरा शहर - जैसलमेर

चलते हैं - जैसलमेर..हाँ जी वही जिसे सुनहरा शहर कहते हैं .जहाँ सोनार किला है.और भी बहुत कुछ है..बात पिछले साल पहली जनवरी की है.पहली जनवरी आने वाली थी..श्रीमती ने कहा कहीं घूमने चला जाय..फिर बहुत सोच विचारकर जैसलमेर चलने का प्लान बनाया गया.टिकट चेक किया तो पता चला कि एक भी सीट खाली नहीं है.एक ही ट्रेन है-डेल्ही जैसलमेर एक्सप्रेस,जिसे लोग इंटरसिटी भी कहते हैं.फिर क्या करें.जैसलमेर का रूट देखा.बीच में जोधपुर पड़ता है.जोधपुर का टिकट मंडोर एक्सप्रेस में उपलब्ध था.मैंने अपने एक मित्र मनोज को कहा जैसलमेर घूमने के लिए.मनोज ने भी अपनी धर्मपत्नी से पूछकर जैसलमेर के लिए हामी भर दी.फिर क्या हम लोग ने टिकट करा लिया-दिल्ली से जोधपुर..फिर रात को जोधपुर से जैसलमेर.वापसी सीधे जैसलमेर से दिल्ली.
31 की रात को हमलोग मंडोर एक्सप्रेस से जोधपुर के लिए चल पड़े और सुबह 8 बजे पहुंचे .घना कुहरा होने के कारण ट्रेन काफी लेट हो चुकी थी.फिर भी हमें क्या..रात को जैसलमेर के लिए निकलना था..फिर बात हुई की ठहरें कहाँ..हमने कहा कि दिनभर तो जोधपुर घूमना है..रात को जैसलमेर के लिए ट्रेन पकड़ना है.क्यूँ न रेलवे का रिटायरिंग रूम देखा जाय.चेक करने पर पता चला कि एक 4 बेड रूम खाली है.तुरंत बुक किया और नहाना धोना चालु.12 बजे तक तैयार हुए.आप सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी देर कैसे हुई..भाई हमारे साथ हमारी बीवियां भी थीं.
जोधपुर रेलवे स्टेशन

फिर तलाश हुई एक गाड़ीवाले की.बड़ी तोलमोल करने बाद एक बंद 500 रुपये में दिनभर घुमाने को तैयार हुआ.हमारा सबसे पहला पड़ाव था-उमेद भवन पैलेस.अभूतपूर्व...कभी ऐसा देखा नहीं था. लेकिन अफ़सोस कि पैलेस का केवल एक तिहाई भाग ही आम लोगों के लिए खुला है. बाकी हिस्सा ओबराय होटल है और जोधपुर नरेश का निवास है. हमारे ड्राईवर ने बताया कि जब जोधपुर की रियासत में भीषण अकाल पड़ा था तब राजा ने इस महल का निर्माण कराया था. मेहनताना के तौर पर केवल खाना दिया जाता था. चलो जी ये तो रही ज्ञान की बात. आगे बढ़ते हैं .

      मेरी धर्मपत्नी और शौर्य -उमेद भवन तो है ही

उसके बाद हमलोग गए मेहरानगढ़ किला. जी हाँ .देखकर लगता है की सुरक्षा के कितने कड़े इंतज़ाम रहे होंगे. किला बहुत ही ऊंचाई पर है .इसलिए थोड़ी ताकत हो तो जांय.अन्यथा लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है.खैर हमलोग पैदल ही गए.हालत ख़राब हो गई..बच्चे को लेकर चढाने में. खैर किला देखकर मजा आ गया.विस्तार से वर्णन नहीं करूंगा .आप जाइये और खुद भारत के विशाल इतिहास के प्रतीक को देखिये. एक वाक्य में इतना ही कहूँगा कि-"इस किले को देखने के बाद बाकी सारे किलों में मजा कम आएगा."
किले के सामने है-जसवंत थड़ा.थड़ा यहाँ किसी कि स्मृति में बनवाए गए स्मारक को कहते है .ये भी कोई राजा ही रहे होंगे.यहाँ से उमेद भवन पैलेस ताजमहल सा दिखता है.

यहाँ से उमेद भवन ताजमहल सा दिखता है
अबतक शाम हो गई थी.वापस स्टेशन आ गए.सामने एक अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाया.जैसलमेर की गाडी 11 बजे थी.हमारा टिकेट कन्फर्म हो गया था.गाडी चली 12 बजे.हम अभी सोए ही थे कि एक आवाज आई ..यात्री गण कृपया ध्यान दें-जैसलमेर स्टेशन आपका स्वागत करता है. जी हाँ 5 बज चुके थे. हमलोग जैसलमेर आ चुके थे..सुनहरी नगरी का किस्सा .अगली बार .

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